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अपलक 8 तुमने में रस देखा, तुम उस पर बिखरे; उसकी उस कूबड़ से, बोलो, क्या रस-बिन्दु झरे ? राधिका नयनन नीर भरे 1 ५ तुम न पारखी चिर सुन्दर के; तुम हो अधकचरे; वरना राधा-स्नेह-सुमन ये क्यों तुमने निदरे ? राधिका नयनन नीर भरे। ६ निश्चल स्नेह रौंदते हो तुम यों ही चरण-तरे; अरे, कहीं न स्मरण-कण्टक बन यह तुमको अखरे ? राधिका नयनन नीर भरे। विना लिये, सन्तत अर्पण हित वह आई नियरे; बिना दिये, इतना लेकर भी, तुम न रंच सिहरे ! राधिका नययन नीर भरे। जाओ, नित कुबजा-सँग खेलो, बोलो हरे-हरे; कह दो राधा से वह अब तो यमुना डूब मरे, ग्वालिन, नयनन नीर भरे। 050319 isamata एक सौ एक