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बड़े बडे 'तीस मारखाँ' देखे है। सब साले दून की हॉकते थे, पर अन्त में सबका सिर नीचा हुआ। यही मैं सबसे ऊचा हुआ। इन्ही हाथो से यह सम्मान, यह धाक, यह जलाल पैदा किया। किसी को क्या समझना हूँ। लखपती होंगे तो अपने घर के। दिखा दूँगा। यही नाक न रगड़े तो नाम नहीं, 'भड्गी का पिशाव' कह देना।

लड़ लो, चाहे जिस तरह लड लो। धन मे, बल में, विद्या मे, खर्च मे। चार कौड़ी क्या हुईं, सालों के सींग निकल आये। धरती पर पैर नहीं टेकते। कुछ परवा नहीं। ईट से ईंट बजा दूँगा। या मैं नही या वह नही। मैं हूँ मैं। किसकी मजाल है। किसकी माने धोसा खाया है, किसकी छाती पर बाल है? पिशाब मे मूछ मुडवा लूँगा। डाढ़ी का बाल उखडवा लूँगा। वह मै हूँ। मेरा नाम क्या साले जानते नहीं है। किसने मुझे अब तक नीचा दिखाया। जो उठा वहीं खटमल की तरह मसल दिया। दम क्या है। किस बूते पर उछलते है। साले पतगे है--पतंगे। बेमौत मरते है। किसी ने सच कहा है---"चिउँटी के जब पर भये, मौत गई नियराय।" यहाँ तो मेरी चलेगी। मेरी ही मूंछे ऊँची उठेगी । यह सारी सम्पदा मैंने अपने भुजबल से पैदा की है। कितनों को रिज्क देता हूँ। कितने मेरा टुकड़ा खाते है। कितने मेरे हाथ से पलते है। किसी