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उसका रस सूखता गया, त्यों त्यों उसमें मेरी समता होती गई। आज उसमें रसगन्ध नहीं है, बिल्कुल सूखा पत्ता है। मैं भी रसगन्धहीन सूखा-बिल्कुल सूखा पत्ता हूँ। मेरे जीवन में और उस पान में यह समता होगी, इसका मुझे कुछ भी आभास नहीं था-उसे भी नहीं था।

उसके पति पर मैं सदा से नाराज़ था। वह मेरा मूर्ख चपरासी था। किन्तु भोला, सच्चा और हँसमुख। मेरी झिड़की को हँस कर सह लेता और हाथ जोड़ कर क्षमा मांगता था। इसी से वह निभ रहा था। पर उसी बदली के दिन से उसके दिन फिरे। उसपर मेरी कृपादृष्टि उमड़ आई। मैंने अपनी स्त्री के द्वारा सुना कि वह इस भाग्यपरिवर्तन का कारण अपनी स्त्री को समझता है! बात सच थी, मैं लज्जा से धरती में गड़ गया। पर असल बात और थी-वह पीछे खुली, उसका यह विश्वास था कि मेरी स्त्री बड़ी भाग्यवान है; उसके गौना होकर घर में आते ही मालिक की कृपादृष्टि और वेतनवृद्धि हुई, वह उसे लक्ष्मी के नाम से पुकारने लगा था। पहले उसके विचार पर आश्चर्य हुआ था, पर अब उसका कोई कारण न रहा।

वह बुढ़िया, ओफ-उसका स्मरण आते ही दम घुटने लगता है मुद्दत से मेरे पास आती थी।कभी वैसा मांगने और कभी


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