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क्षणभंगुर

वह अतिशय शुभ्र और शीतल था और मैं नादान उत्तप्त। मैंन उसे 'ताप के उन्माद में सिर पर. छाती पर और मुख पर खूब रगडा. दबाया, मुख में रख कर चूसा, और क्षण भर शान्ति लाभ की। परन्तु वह जेसा अभिमानी और कठौर था, वैसा ही क्षण भगुर भी। मेरा ताप तो वैसा ही रहा और वह घुल कर रह गया, उसी ताप से तप कर।