कलाधर की स्निग्ध ज्योत्स्ना आकाश मे खिली हुई है और रात दूध मे नहा रही है। पर जब तक तुम्हारे नेत्रों का प्रकाश मेरे नेत्रों में ज्योति बनाये हुए मुझे किस प्रकाश की जरूरत है।