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किस तरह स्मृति की उस तीव्र मद्य ने मन को उन्मत बना रखा है। मैं तो सब कुछ खो चुका, भय है अब कहीं स्वयं न खो जाऊं। पर अपने विषय मे कुछ सोचने का तो मुझे अवकाश ही नहीं है? मैं सोचता हूं---वह कुछ तो कहेगी, मुस्करायेगी, अथवा----टप से एक बूंद अमल धवल उत्तप्त जलकण अपने अभ्यास के अनुसार चुपचाप गिरा देगी।