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तारों की छाँह में

तारों की छाँह मे जब तुम सोती थीं, मैं तुम्हे निहारता था। तुम्हारी केशराशि की सुगन्ध को लेकर वायु बहा करती थी और मैं उस गम्भीर सुख मे मग्न बैठता था। तुम सोती हुई कैसी मोहक लगतीं थीं।

अब भी मैं तुम्हे तारों की छांह मे उसी तरह प्रतिदिन सोती देखता हू, पर वह सुगन्धित वायु मानो मुझ से दूर ही दूर मॅडराती है। मैं उसे स्पर्श नहीं कर पाता।

प्रभात मे पुष्प की प्रत्येक पंखड़ी मे मैं उस सुगन्ध को ढूंढता हू, बायु के प्रत्येक परमाणु मे खोजता हू पर नहीं मिलती।

मुझे अब भस्म होना है। और परमाणु रूप होकर उसे खोजना है