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क्षण भर बाद, जब मृत्यु उसकी तरफ अन्धकार से अपना हाथ बढ़ाने लगी---तो उसने विश्वासपूर्वक उसे थाम लिया!

तब से--मेरा जीवन अकेला है, और वह मुझसे अलग है। पर अभी भी वह मुझे प्यार करती है। हमारा सम्मिलन ग्रीष्म और शिशिर के समान परस्पर का प्यासा था। और हमारा विछोह केवल मृत्यु न थी। अविश्वासी चाहे जो कुछ कहे---पर न वह प्रेम अभी खर्च हो गया है और न उसका व्यवच्छेद हुआ है।

मैं रोऊँगा नहीं। यद्यपि सब कुछ गम्भीर गर्त मे डूब गया है पर मैं इसमे भूलने वाला व्यक्ति नहीं हूँ। विचारधाराओं से वह दूर है। वह नक्षत्रों को बांच रही है। वह निकट और दूर से व्याप्त है। प्रशान्त रात्रि के सन्नाटे मे मैं उसकी पसन्द का गीत गाता हूँ। और वह स्थिर होकर सुनती है।

मेरी विश्वासी आँखे उस पर अचल है। परन्तु मोह की मदिरा, जो प्यार ही की तरह मालूम होती है---दृष्टि के नीचे पड़ ही जाती है। और मैं अभागा असंयत हो उठता हूँ परन्तु वे अतीत कण्टकित हाथ और उस मुख से सुवासित वातावरण


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