पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/७२

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अनासक्तियोग ईश्वरकी अंशरूपी शक्ति । इस अर्थमें मनुष्य भी देवता है। भाप, बिजली आदि महान् शक्तियां देवता हैं। उनको आराधना करनेका फल तुरंत और इस लोकमें मिलता हुआ हम देखते हैं। वह फल क्षणिक होता है। वह आत्माको हो संतोष नहीं देता तो मोक्ष तो दे ही कहांसे सकता है ? चातुर्वण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः । तस्य कर्तारमपि मां विद्धयकर्तारमव्ययम् ।।१३।। गुण और कर्मके विभागानुसार चार वर्ण मैंने उत्पन्न किये हैं, उनका कर्ता होनेपर भी मुझे तू अवि- नाशी-अकर्ता जानना । न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा । इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ॥१४॥ मुझे कर्म स्पर्श नहीं करते हैं। मुझे इनके फलकी लालसा नहीं है। इस प्रकार जो मुझे अच्छी तरह जानते हैं, वे कर्मके बंधनमें नहीं पड़ते । १४ टिप्पलो--क्योंकि मनुष्यके सामने, कर्म करते हुए अकर्मी रहनेका सर्वोत्तम दृष्टांत है। और सबका कर्ता ईश्वर ही है, हम निमित्तमात्र ही हैं, तो फिर कर्तापनका अभिमान कैसे हो सकता है ?