पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/६७

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पौषा मन्यावहानकर्मसंन्यासयोग टिप्पदी-यदि मनुष्य शरीरस्थ आत्माको जान ले तो मन उसके वशमें रहेगा, इंद्रियोंके वशमें नहीं रहेगा। और मन जीता जाय तो काम क्या कर सकता है ? ॐ तत्सत् इति श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद अर्थात् ब्रह्म- विद्यांतर्गत योगशास्त्रके श्रीकृष्णार्जुनसंवादका 'कर्मयोग' नामक तीसरा अध्याय । ज्ञानकर्मसंन्यासयोग इस अध्यायमे तीसरेका विशेष विवेचन है और भिन्न- भिन्न प्रकारके कई यज्ञोंका वर्णन है। श्रीभगवानुवाच इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् । विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ॥ १॥ भीमगवान बोले- यह अविनाशी योग मैंने विवस्वान (सूर्य) से कहा। उन्होंने मनुसे और मनुने इक्ष्वाकुसे कहा। १