पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रस्ठ विचारसे कुछ नहीं है । तब मैने मनुवाद करनेकी पृष्टता क्यों की? गीताको मैंने जिस प्रकार समझा है उस प्रकार उसका आचरण करनेका मेरा और मेरे साथ रहनेवाले कई साथियोंका बराबर प्रयत्न है। गीता हमारे लिए आध्यात्मिक निदान-ग्रंथ है। उसके अनुसार प्राचरणमें निष्फलता रोज आती है, पर वह निष्फलता हमाल प्रयत्न रहते हुए है। इस निष्फलतामें सफलताकी फूटती हुई किरणोंकी झलक दिखाई देती है । यह नन्हा-सा जन-समुदाय जिस अर्थको आचारमें परि- णत करनेका प्रयत्न करता है वह इस अनुवादमे है । इसके सिवा स्त्रियां, वैश्य और शूद्र सरीखे जिन्हें अक्षरज्ञान थोड़ा ही है, जिन्हें मूल संस्कृतमे गीता समझनेका समय नहीं है, इच्छा नही है, परंतु जिन्हें गीतास्पी सहारेकी प्रावश्यकता है, उन्हीके लिए इस अनुवाद- की कल्पना है। गुजराती भाषाका मेरा ज्ञान कम होनेपर भी उसके द्वारा गुजरातियोंको मेरे पास जो कुछ पूंजी हो वह दे जानेकी मुझे सदा भारी अभिलाषा रही है । मैं यह चाहता हूं अवश्य कि आज गंदे साहित्य- का जो प्रवाह जोरोंसे जारी है उस समयमे हिंदू-धर्ममें अद्वितीय माने जानेवाले इस ग्रंथका सरल अनुवाद गुजराती जनताको मिले और उसर्मेसे वह उस प्रवाहका सामना करनेकी शक्ति प्राप्त करे । इस अभिलाषामें दूसरे गुजराती अनुवादोंकी अवहेलना नहीं है । उन सबका स्थान भले ही हो; पर उनके पीछे उनके अनुवादकोका प्राचार- रूपी अनुभवका दावा हो, ऐसा मेरी जानकारीमें नहीं है । इस अनुवादके पीछे पड़तीस वर्षके प्राचारके प्रयत्नका दावा है। इसलिए मै यह अवश्य चाहता हूँ कि प्रत्येक गुजराती भाई और बहन, जिन्हे धर्मको पाचरणमें लानेकी इच्छा है, इसे पहें, विचारें और इसमेंसे शक्ति प्राप्त करें। 'गांधीजीका अनुवाद गुजरातीमें है। यह उसीका हिंदी रूपान्तर है।