पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/४३

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दूसरा अध्याय : सांख्ययोग २६ जब तेरी बुद्धि मोहरूपी कीचड़से पार उतर जायगी तब तुझे सुने हुएके विषयमें और सुननेको जो बाकी होगा उसके विषयमें उदासीनता प्राप्त होगी। ५२ श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला। समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ।।५३।। अनेक प्रकारके सिद्धांतोंको सुननेसे व्यग्र हुई तेरी बुद्धि जब समाधिमें स्थिर होगी तभी तू समत्वको प्राप्त होगा। ५३ अर्जुन उवाच स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव । स्थितधी: कि प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ।।५४।। अर्जुन बोले- हे केशव ! स्थितप्रज्ञ अथवा समाधिस्थके क्या लक्षण होते है ? स्थितप्रज्ञ कसे बोलता, बैठता और चलता है ? ५४ श्रीमगवानुवाच प्रजहाति यदा कामान्सन्पिार्थ मनोगतान् । आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ॥५५॥