पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/४०

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बनासक्तियोग टिप्पणी-जब बुद्धि एकसे मिटकर अनेक (बुद्धियां) होती है, तब वह बुद्धि न रहकर वासना- का रूप धारण करती है । इसलिए बुद्धियोंसे तात्पर्य है वासनाएं। यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः । वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥४२।। कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् । क्रियाविशेषबहुलां भोगश्वर्यगतिं प्रति ॥४३॥ भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् । व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥४४॥ अज्ञानी वेदवादी, 'इसके सिवा और कुछ नहीं है' यह कहनेवाले, कामनावाले, स्वर्गको श्रेष्ठ मानने- वाले, जन्म-मरणरूपी कर्मके फल देनेवाली, भोग और ऐश्वर्यप्राप्तिके लिए किये जानेवाले कर्मोके वर्णनसे भरी हुई बातें बढ़ा-बढाकर कहते हैं। भोग और ऐश्वर्य- में आसक्त रहनेवाले इन लोगोंकी वह बुद्धि मारी जाती है, इनकी बुद्धि न तो निश्चयवाली होती है और न वह समाधिमें ही स्थिर हो सकती है। ४२-४३-४४ टिप्पणी-योगवादके विरुद्ध कर्मकांड अथवा वेदवादका वर्णन उपर्युक्त तीन श्लोकोंमें आया है।