पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/३६

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२२ अनासक्तिबोग . आश्चर्यवच्चनमन्यः शृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ॥२९।। कोई इसे आश्चर्यसमान देखता है कोई इसे आश्चर्यसमान वर्णन करता है और कोई इसे आश्चर्य- समान वर्णन किया हुआ सुनता है, परंतु सुननेपर भी कोई इसे जानता नहीं है। २९ देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत । तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥३०॥ हे भारत ! सबकी देहमें विद्यमान यह देहधारी आत्मा नित्य अवध्य है, इसलिए भूतमात्रके विषयमें तुझे शोक करना उचित नहीं है। ३० टिप्पणी--यहांतक श्रीकृष्णने बुद्धिप्रयोगसे आत्माका नित्यत्व और देहका अनित्यत्व समझाकर बतलाया कि यदि किसी स्थितिमें देहका नाश करना उचित समझा जाय तो स्वजनपरिजनका भेद करके कौरव सगे हैं, इसलिए उन्हें कैसे मारा जाय यह विचार मोहजन्य है। अब अर्जुनको बतलाते हैं कि क्षत्रिय धर्म क्या है। स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि । धाद्धि युद्धाच्छेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते ॥३१॥ स्वधर्मको समझकर भी बुझे हिचकिचाना उचित