४० करनेवाला और निद्रा, आलस्य तथा प्रमादमेंसे उत्पन्न हुआ है, वह तामस सुख कहलाता है । न तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुनः । सत्त्वं प्रकृतिजर्मुक्तं यदेभिः स्यातिभिर्गुणैः ॥४०॥ पृथ्वी में या देवताओंके मध्य स्वर्गमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो प्रकृतिमें उत्पन्न हुए इन तीन गुणोंसे मुक्त हो। ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप । कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवर्गुणैः ॥४१॥ हे परंतप ! ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रके कर्मोंके भी उनके स्वभावजन्य गुणोंके कारण विभाग हो गये हैं। ४१ शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च । ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ॥४२॥ शम, दम, तप, शौच, क्षमा, सरलता, ज्ञान, अनु- भव, आस्तिकता-ये ब्राह्मणके स्वभावजन्य कर्म हैं। ४२ शौर्य तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम् । दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम् ॥४३॥ शौर्य, तेज, धृति, दक्षता, युद्ध में पीठ म दिखाना, दान, शासन-ये क्षत्रियके स्वभावजन्य कर्म हैं। ४३
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