मायावां मयाब: संन्यासयोग ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधव गुणभेदतः । प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि ॥१९॥ शान, कर्म और कर्ता गुणभेदके अनसार तीन प्रकारके हैं। गुणगणनामें उनका जैसा वर्णन किया जाता है वैसा सुन । सर्वभूतेषु येनक भावमव्ययमीक्षते । अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम् ॥२०॥ जिसके द्वारा मनुष्य समस्त भूतोंमें एक ही अवि- नाशी भावको और विविधतामें एकताको देखता है उसे सात्त्विक ज्ञान जान । २० पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान् । वेत्ति सर्वेषु भूतेषु ज्ञानं विद्धि राजसम् ॥२१॥ भिन्न-भिन्न (देखनमें) होनेके कारण समस्त भूतोंमें जिसके द्वारा मनुष्य भिन्न-भिन्न विभक्त भावोंको देखता है उस ज्ञानको राजस जान । यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तमहतुकम् । अतत्त्वार्थवदल्पं च तत्तामसमुदाहृतम् ॥२२॥ जिसके द्वारा एक ही कार्यमें बिना किसी कारणके सब आ जानेका भास होता है, जो रहस्यरहित और तुच्छ है वह तामस शान कहलाता है। २२
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