पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२०७

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- न रखना-लंपट न होना, तेज अर्थात् प्रत्येक प्रकार- की हीन वृत्तिका विरोध करनेका जोश, बद्रोह अर्थात् किसीका बुरा न चाहना या करना । दम्भो दर्पोऽभिमानश्च कोषः पारुष्यमेव च । अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ संपदमासुरीम् ।।४।। दंभ, दर्प, अभिमान, कोष, पारुष्य, अज्ञान, हे पार्थ ! इतने आसुरी संपत् लेकर जन्मनेवालोंमें होते हैं। टिप्पणी-जो अपने में नहीं है वह दिखाना दंभ है, ढोंग है, पाखंड है । दर्प यानी बड़ाई, पारुष्यका अर्थ है कठोरता। दैवी संपविमोक्षाय निबन्धायासुरी मा शुचः संपदं देवीमभिजातोऽसि पाण्डव ॥५॥ दैवी संपत् मोक्ष देनेवाली और आसुरी (संपत्) बंधनमें डालनेवाली मानी गई है। हे पांडव ! तू विषाद मत कर । तू दैवी संपत् लेकर जन्मा है । द्वो भूतसगौं लोकेऽस्मिन्दैव आसुर एव च । देवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे शृणु ॥ ६ ॥ इस लोकमें दो प्रकारकी सृष्टि है-दैवी और आसुरी। हे पार्थ ! देवीका विस्तारसे वर्णन किया गया। आसुरीका (अब) सुन । ६ मता।