बोहमी सन्यास मुलाबिमानयोल ३ मम योनिमहब्रह्म तस्मिनाभं दधाम्यहम् । संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत ॥३॥ हे भारत ! महद्ब्रह्म अर्थात् प्रकृति मेरी योनि है। उसमें में गर्भाधान करता हूं और उससे प्राणीमात्रकी उत्पत्ति होती है। सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः संभवन्ति तासां ब्रह्म महयोनिरहं बीजप्रदः पिता ॥४॥ हे कौतेय ! सब योनियोंमें जिन-जिन प्राणियोंकी उत्पत्ति होती है उनकी उत्पत्तिका स्थान मेरी प्रकृति है और उसमें बीजारोपण करनेवाला पिता-पुरुष- याः। मैं हूं। और तमस् ५ सत्त्वं रजस्तम इति गुणा: प्रकृतिसंभवाः । निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ॥ ५॥ हे महाबाहो ! सत्त्व, रजस् प्रकृतिसे उत्पन्न होनेवाले गुण हैं। वे अविनाशी देहधारी- जीव--को देहके संबंधमें बांधते हैं। तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम् । सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ ॥ ६॥ इनमें सत्त्वगुण निर्मल होनेके कारण प्रकाशक और आरोग्यकर है, औरहे अनध ! वह देहीको सुखके और ज्ञानके संबंधमें बांधता है।
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