पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१६२

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अमासक्तियत्म नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं समद्गवं भीतभीतः प्रणम्य ॥३५॥ संबपने कहा- - केशवके ये वचन सुनकर हाथ जोड़े, कांपते, बार- बार नमस्कार करते हुए, डरते-डरते प्रणाम करके मुकुटधारी अर्जुन श्रीकृष्णसे गद्गद् कंठसे इस प्रकार बोले। ३५ अर्जुन उवाच स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः ॥३६॥ अर्जुन बोले- हे हृषीकेश ! आपका कीर्तन करके जगत को जो हर्ष होता है और आपके लिए जो अनुराग उत्पन्न होता है वह उचित ही है। भयभीत राक्षस इधर-उधर भाग रहे हैं और सिद्धोंका सारा समुदाय आपको नमस्कार कर रहा है। -