पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१५७

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स्वारहवां सम्मान : विकल्पदर्शनयोग कल्याण हो' कहता हुआ अनेक प्रकारसे आपका यश गा रहा है। रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च । गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसंघा वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ॥२२॥ रुद्र, आदित्य, वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनी-- कुमार, मरुत, गरम ही पीनेवाले पितर, गंधर्व, यक्ष असुर और सिद्धोंका संघ ये सभी विस्मित होकर आपको निरख रहे हैं। २२ रूप महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं महाबाहो बहुबाहूरुपादम् । बहूदरं बहुदष्ट्राकराल दृष्ट्वा लोका: प्रव्यथितास्तथाहम् ॥२३॥ हे महाबाहो ! बहुत मुख और आंखोंवाला, बहुत हाथ, जंघा और पैरोंवाला, बहुत पेटोंवाला और बहुत दाढ़ोंके कारण विकराल दीखनेवाला विशाल रूप देख- कर लोक व्याकुल हो गए हैं। वैसे ही मैं भी व्याकुल हो उठा हूं। २३ नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्ण व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम् ।