पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१५०

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अथवा है अर्जुन ! यह विस्तारपूर्वक जानकर तुझे क्या करना है । अपने एक अंशमात्रसे इस समूचे जगत- को धारण करके में विद्यमान हूं। ४२ ॐ तत्सत् इति श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद अर्थात् ब्रह्म- विद्यांतर्गत योगशास्त्रके श्रीकृष्णार्जुनसंवादका 'विभूति- योग' नामक दसवां अध्याय । विश्वरूपदर्शनयोग इस अध्यायमें भगवान अपना विराट स्वरूप अर्जुनको बतलाते हैं । भक्तोंको यह अध्याय बहुत प्रिय है। इसमें दलीलें नहीं, बल्कि केवल काव्य है । इस अध्यायका पाठ करते-करते मनुष्य थकता ही नहीं। अर्जुन उवाच मदनुग्रहाय परम गुह्यमध्यात्मसंज्ञितम् । यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥१॥ अर्जुन बोले- आपने मुझपर कृपा करके यह आध्यात्मिक परम