पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अना स क्लि योग अर्जुनविषादयोग जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दुःख बिना सुख नहीं होता। धर्मसंकट-हृदयमथन सब जिज्ञासुओंको एक बार होता ही है। धृतराष्ट्र उवाच धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्र समवेता युयुत्सवः । मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥१॥ धृतराष्ट्र पोले- हे संजय ! मुझे बतलाओ कि धर्मक्षेत्ररूपी कुरु- क्षेत्रमें युद्ध करनेकी इच्छासे इकट्ठे हुए मेरे और पांडुके पुत्रोंने क्या किया ? १ टिप्पणी- यह शरीररूपी क्षेत्र धर्मक्षेत्र है, क्योंकि यह मोक्षका द्वार हो सकता है। पापसे इसकी उत्पत्ति है और पापका यह भाजन बना रहता है, इसलिए यह कुरुक्षेत्र है।