पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१४१

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७ बसपा मवाव : विभूतिकोष '१२७ सप्तर्षि, उनके पहले सनकादिक चार और (चौदह) मनु मेरे संकल्पसे उत्पन्न हुए और उनमेंसे ये लोक उत्पन्न हुए हैं। ६ एतां विभूति योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः । सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः ।। ७॥ इस मेरी विभूति और शक्तिको जो यथार्थ जानता है वह अविचल समताको पाता है, इसमें संशय नहीं है। अह सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्व प्रवर्तते । इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ॥८॥ मैं सबकी उत्पत्तिका कारण हूं और सब मुझसे ही प्रवृत्त होते हैं, यह जानकर समझदार लोग भावपूर्वक मुझे भजते हैं। मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् । कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥ ९॥ मुझमें चित्त लगानेवाले, मुझे प्राणार्पण करनेवाले एक-दूसरेको बोध कराते हुए, मेरा ही नित्य कीर्तन करते हुए, संतोष और आनंदमें रहते हैं। तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् । ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥१०॥ इस प्रकार मुझमें तन्मय रहनेवालोंको और मुझे ८ on