पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१२५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मान्यां प्रयास : प्रबरबहायोग वह सनातन इस अव्यक्तसे परे दूसरा सनातन अव्यक्त भाव है। समस्त प्राणियोंका नाश होते हुए भी अव्यक्त भाव नष्ट नहीं होता। २० अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम् । यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥२१॥ जो अव्यक्त, अक्षर (अविनाशी) कहलाता है, उसीको परमगति कहते हैं। जिसे पानेके बाद लोगोंका पुनर्जन्म नहीं होता, वह मेरा परमधाम है। २१ पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया । यस्यान्तःस्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ॥२२॥ हे पार्थ ! इस उत्तम पुरुषके दर्शन अनन्य भक्तिसे होते हैं। इसमें भूतमात्र स्थित हैं और यह सब उससे व्याप्त है। २२ यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः । प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ॥२३॥ जिस समय मरकर योगी मोक्ष पाते हैं और जिस समय मरकर उन्हें पुनर्जन्म प्राप्त होता है वह काल हे भरतर्षभ ! मैं तुझसे कहूंगा । २३ अग्निोतिरहः शुक्ल: षण्मासा उत्तरायणम् । तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥२४॥ उत्तरायणके छ: महीनोंमें, शुक्लपक्षमें, दिनको