पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१२३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पाठयां मध्याय : भवरामयोग और निरंतर मेरा ही स्मरण करता है वह नित्ययुक्त योगी मुझे सहजमें पाता है। १४ मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् । नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धि परमां गताः ॥१५॥ मुझे पाकर परमगतिको पहुंचे हुए महात्मा दुःखके घर अशाश्वत पुनर्जन्मको नहीं पाते । १५ आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जन । मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥१६॥ हे कौंतेय ! ब्रह्मलोकसे लेकर सभी लोक फिर- फिर आनेवाले हैं; परंतु मुझे पानेके बाद मनुष्यको फिर जन्म नहीं लेना होता । सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्वह्मणो विदुः। रात्रि युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः ॥१७॥ हजार युगतकका ब्रह्माका एक दिन और हजार युगतककी ब्रह्माकी एक रात, जो जानते हैं वे रातदिनके जाननेवाले हैं। १७ टिप्पणी--तात्पर्य, हमारे चौबीस घंटेके रात- दिन कालचक्रके अंदर एक क्षणसे भी सूक्ष्म हैं। उनकी कोई गिनती नहीं है। इसलिए उत्तने समयमे मिलनेवाले भोग आकाश-पुष्पवत् हैं, यों समझकर हमें उनकी ओरसे उदासीन रहना चाहिए और