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वन-बेला इस तरह बहुत कुछ। श्राया निज इच्छित स्थल पर बैठा एकान्त देखकर मर्माहत स्वर भर ! फिर लगा सोचने यथासूत्र-'मैं भी होता यदि राजपुत्र-मैं क्यों न सदा कलङ्क ढोता, ये होते-जितने विद्याधर-मेरे अनुचर, मेरे प्रसाद के लिये विनत-सिर उद्यत-कर; मैं देता कुछ, रख अधिक, किन्तु जितने पेपर, सम्मिलित कण्ठ से गाते मेरी कीर्ति अमर, जीवन-चरित्र लिख अग्रलेख अथवा, छापते विशाल चित्र । इतना भी नहीं, लक्षपति का भी यदि कुमार होता मैं, शिक्षा पाता अरब-समुद्र-पार, देश की नीति के मेरे पिता परम पण्डित एकाधिकार रखते भी धन पर, अविचल-चित होते उग्रतर साम्यवादी, करते प्रचार, चुनती जनता राष्ट्रपति उन्हें ही सुनिर्धार, पैसे में दस राष्ट्रीय गीत रच कर उन पर ,