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वन-बेला वर्ष का प्रथम पृथ्वी के उठे उरोज मन्जु पर्वत निरुपम किसलयों बंधे, पिक-भ्रमर-गुज भर मुखर प्राण रच रहे सधे प्रणय के गान, सुनकर रहसा, प्रखर से प्रखर तर हुआ तपन-यौवन सहसा अर्जित, भास्वर पुलकित शत शत व्याकुल कर भर चूमता रसा को बार बार चुम्बित दिनकर क्षोभ से, लोभ से, ममता से, उत्कण्ठा से, प्रणय के नयन की समता से, , , सर्वस्व दान देकर, लेकर सर्वस्व प्रिया का सुकृत मान । दाब में ग्रीष्म, भीष्म से भीष्म बढ़ रहा ताप, ८३: