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विनय (गीत) पथ पर मेरा जीवन भर दो, बादल हे अनन्त अम्बर के ! बरस सलिल, गति ऊर्मिल कर दो। तट हों विटप छॉह के, निर्जन, सस्मित-कलिदल-चुम्बित-जलकण, शीतल शीतल बहे समीरण, कूजे द्रम-विहङ्गगण, वर दो! दूर ग्राम की कोई वामा आये मन्दचरण अभिरामा, उतरे जल में अवसन श्यामा, अङ्कित उर-छबि सुन्दरतर हो! ७.३७,