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आवेदन (गीत) फिर सवॉर सितार लो ! बाँध कर फिर ठाट, अपने अङ्क पर मकार दो! शब्द के कलि-दल खुलें, गति-पवन-भर कॉप थर-थर मीड़-भ्रमरावलि दुलें, गीत -- परिमल बहे निर्मल, फिर महार बहार हो! सज जाय यह तरी, यह सरित, यह तट, यह समुदाय। कमल-वलयित-सरल-दृग-जल हार का उपहार हो! स्वप्न ज्यों गगन, १०.४.३७.