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रेखा आज वह याद है वसन्त, जब प्रथम दिगन्तश्री सुरभि धरा के आङ्काक्षित हृदय की, दान प्रथम ह्रदय को था ग्रहण किया हृदय ने; अज्ञात भावना, सुख चिर-मिलन का, हल किया प्रश्न जब सहज एकत्व का प्राथमिक प्रकृति ने, उसी दिन कल्पना ने पाई सजीवता। प्रथम कनकरेखा प्राची के भाल पर- प्रथम शृङ्गार स्मित तरुणी वधू का, नील गगनविस्तार केश, किरणोज्ज्वल नयन नत, हेरती पृथ्वी को। - ७७.