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रेखा प्रतिमा सौन्दर्य की हृदय के मच पर आई न थी तब भी, पत्र-पुष्प-अर्घ्य ही सन्चित था हो रहा आगम-प्रतीक्षा में,- स्वागत की वन्दना ही सीखी थी हृदय ने। उत्सुकता वेदना, भीति, मौन, प्रार्थना नयनों की नयनों से, सिञ्चन सुहाग-प्रेम, दृढ़ता चिबुक की, अधरों की विह्वलता, भ्र-कुटिलता, सरल हास, वेदना करठ में, मृदुता हृदय में, काठिन्य वक्षस्थल में, हाथों में निपुणता,

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