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रेखा यौवन के तौर पर प्रथम था आया जब स्रोत सौन्दर्य का, वीचियों में कलरव सुख चुम्बित प्रणय का था मधुर आकर्षणमय, मज्जनावेदन मृदु फूटता सागर मे । 'वाहिनी संमृति की आती अज्ञात दूर चरण-चिह्न-रहित स्मृति रेखाएँ पारकर, प्रीति की प्लावन-पटु, क्षण में बहा लिया- साथी मैं हो गया अकूल का, भूल गया निज सीमा, क्षण में अज्ञानता को सौप दिये मैने प्राण बिना अर्थ, प्रार्थना के। तापहर हृदय-वेग लग्न एक ही स्मृति में - ६8 ।