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अनामिका . मन्द्र उठा तू बन्द-बन्द पर जलने वाली तान विश्व की नश्वरता कर नष्ट, जीर्ण-शीर्ण जो, दीर्ण धरा में प्राप्त करे अवसान, रहे अवशिष्ट सत्य जो स्पष्ट । ताल-ताल से र सदियों के जकड़े हृदय-कपाट, खोल दे कर कर कठिन प्रहार, आये अभ्यन्तर संयत चरणों से नव्य विराट, करे दर्शन, पाये आभार । छोड़, छोड़ दे शङ्काएँ, रे निर्भर-गर्जित वीर ! उठा केवल निर्मल निर्घोष, देख सामने, बना अचल उपलों को उत्पल, धीर ! प्राप्त कर फिर नीरव सन्तोप! भर उद्दाम वेग से बाधाहर तू दूर कर दे दुर्बल विश्वास, किरणों की गति से श्रा, आ तू , गा तू गौरव-गान, एक कर दे पृथ्वो-आकाश । 1 , कर्कश प्राण १२४.२४.