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तमा कर रहे हो अथवा तुम देव, अपने जन के स्खलम और सच पतन ? ॥वांधे थे तुमने जिस स्वर में सार, उतर गये उससे ये घारम्बार ! दुर्वल मेरे प्राण कहो भला फिर कैसे गाते रचे तुम्हारे गान है। १७.५.२५. ॐ महाकवि श्रीरवीन्द्रनाथ ठाकुर के भावों से।