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क्षमा-प्रार्थना , और आज कितनी दुर्बल हूँ- लेती ठंढी साँस ! प्रिय अभिनव! मेरे अन्तर के मृदु अनुभव ! इतना तो कह दो- मिटी तुम्हारे इस जीवन की प्यास ? और हॉ, यह भी, जीवन-नार्थ !- मेरी रजनी थी यदि तुमको प्यारी तो प्यारा क्या होगा यह अलस प्रभात ? वर्षा, शरत्, वसन्त, शिशिर, ऋतु शीत, पार किये तुमने सुन सुनकर मेरे जो सङ्गीत, घोर ग्रीष्म में वैसा ही मन लगा, सुनोगे क्या मेरे वे गीत- कहो, जीवन-धन ! माला में ही सूख गये जो फूल क्या न पड़ेगी उन पर, प्रियतम, एक दृष्टि अनुकूल! ताक रहे हो दृष्टि, जाँच रहे हो या मन ?-~- , +५.