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अनामिका गये गाये जहाँ कितने राग देश के, विदेश के! यही धाराएँ जहाँ कितनी किरणों को चूम ! कोमल निषाद भर उठे वे कितने स्वर! कितनी वे रातें स्नेह की बातें रक्खे निज हृदय में आज भी हैं मौन जहाँ! यमुना की ध्वनि में है गूंजती सुहाग-गाथा, सुनता है अन्धकार खड़ा चुपचाप जहाँ! आज वह 'फिरदौस सुनसान है पड़ा। शाही दीवान-माम स्तब्ध है हो रहा, दुपहर को, पार्श्व में, उठता है मिल्लीरव, बोलते हैं स्यार रात यमुना-कछार में, लीन हो गया है रव शाही अङ्गनाओं का,