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दिल्ली बाँधे युग बाहुओं के लीन होते थे जहाँ अन्तहीनता में मधुर ?- - अश्रु बह जाते थे, कामिनी के कोरों से कमल के कोषों से प्रात की ओस ज्यों, मिलन की तृष्णा से फूट उठते थे फिर, रंग जाता नथा राग ?-- केश-सुख-भार रख मुख प्रिय-स्कन्ध पर भाव की भाषा से कहती सुकमारियों थीं कितनी ही बाते जहाँ राते विरामहीन करती हुई ?- प्रिया की ग्रीवा कपोत बाहुओं से घेर मुग्ध हो रहे थे जहाँ प्रिय-मुख अनुरागमय ?- खिलते सरोवर के कमल गमय हिलते डुलते थे जहाँ स्नेह की वायु से, प्रणय के लोक में आलोक प्राप्त कर ? रचे गये गीत, -