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अनामिका भला बताओ, क्यों केवल हँसती हो ?- क्यों गाती हो? धीरे धीरे किस विदेश की ओर लिये जाती हो ? (२) माँका खिड़की खोल तुम्हारी छोटी सी नौका पर, व्याकुल थीं निरसीम सिन्धु की ताल-तरङ्ग गीत तुम्हारा सुनकर; विकल हृदय यह हुआ और जब पूछा मैने पकड़ तुम्हारे स्रस्त वन का छोर, मौन इशारा किया उठा कर उंगली तुमने धेसते पच्छिम सान्ध्य गान में पीत तपन की ओर। क्या वही तुम्हारा देश ऊर्मि-मुखर इस सागर के उस पार- कनक-किरण से छाया अस्ताचल का पश्चिम द्वार ? वतारो-वही ?--जहाँ सागर के उस श्मशान में आदिकाल से लेकर प्रतिदिवसावसान में जलती प्रखर दिवाकर की वह एक चिता है, और उधर फिर क्या है ? - -