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अनामिका कर्मयोग की विमल पताका और मोह का अस्त्र, सत्य जीवन के फल का त्याग । मृत्यु मे तृष्णा में अभिराम एक उपदेश, कर्ममय, जटिल, तृप्त, निष्काम: देव, निश्शेष । तुम हो वन-कठोर किन्तु देवव्रत, होता है संसार अत. मस्तक-नत 3 ॐ महाकवि श्रीरवीन्द्रनाथ के वैशाख' से। .५४: