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ज्येष्ठ वताओ, यह भी कोई रीति ? छोड़ घर-द्वार, जगाते हो लोगों में भीति,--तीन सस्कार !-- या निष्ठुर पोड़न से तुम नव जीवन भर देते हो, बरसाते है तम धन ! (३) 1 तेजः पुञ्ज । तपस्या को यह ज्योति-- -प्रलय साकार; उगलते आग धरा आकाशा पड़ा चिता पर जलता मृत गत वर्ष प्रसिद्ध असार, प्रकृति होती है देख निराश ! सुरधुनी में रोदन-ध्वनि दीन, --विकल उच्छवास, , दिग्वधू की पिक-वाणी क्षीण-दिगन्त उदास; देखा जहॉ वहीं है ज्योति तुम्हारी, सिद्ध ! कॉपती है यह माया सारी । (४) शाम हो गई, फैलाओ वह पीत गेरुआ वस्त्र, रजोगुण का वह अनुपम राग, 1