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तट पर " वायु सेविका-सी आकर पोंछे युगल उरोज, बाहु, मधुराधर । तरुणी ने सव ओर देख, मन्द हॅस, छिपा लिये उन्नत पीन उरोज, उठा कर शुष्क वसन का छोर । मूर्छित वसन्त पत्रों पर; तरु से वृन्तच्युत कुछ फूल गिरे उस तरुणी के चरणों पर २. २.२४

  • महाकवि श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर की 'विजयिनी' से।
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