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प्रिया से मेरे इस जीवन की है तू सरस साधना कविता, मेरे तरु की है तू कुसुमित प्रिये कल्पना-लतिका; मधुमय मेरे जीवन की प्रिय है तू कमल-कामिनी, मेरे फुन्ज-कुटीर-द्वार की कोमल-चरणगामिनी; नूपुर मधुर बज रहे तेरे, सव शृङ्गार सज रहे तेरे, अलक-सुगन्ध मन्द मलयानिल धीरे-धीरे ढोती, पथश्रान्त तू सुप्त कान्त की स्मृति में चलकर सोती। कितने वर्षों में, कितने चरणों में तू उठ खड़ी हुई, कितने चन्दों में, कित्तने छन्दों में तेरी लड़ी गई, कितने प्रन्यों में, कितने पन्थों में देखा पढ़ी गई तेरी अनुपम गाथा, मैने मन में अपने मन में जिसे कभी गाया था। .४२: