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क्या गाऊँ - क्या गाऊँ ?-माँ! क्या गाऊँ ? गूंज रही हैं जहाँ राग-रागिनियाँ, गाती हैं किन्नरियॉ-कितनी परियाँ- कितनी पंचदशी कामिनियॉ, वहाँ एक यह लेकर वीणा दीन तन्त्री-क्षीण, नहीं जिसमें कोई झङ्कार नवीन, रुद्ध करठ का राग अधूरा कैसे तुझे सुनाऊँ ?- मॉ! क्या गाऊँ? छाया है मन्दिर में तेरे यह कितना अनुराग ! चढ़ते हैं चरणों पर कितने फूल मृदु-दल, सरस-पराग; गन्ध-मोद-मद पीकर मन्द समीर शिथिल चरण जब कभी बढ़ाती आती, सजे हुए बजते उसके अधीर नूपुर-मंजीर !