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यहीं - मधुर मलय में यहीं गूंजी थी एक वह जो तान लेती हिलोरे थी समुद्र की तरङ्ग-सी,- उत्फुल्ल हर्ष से प्लावित कर जाती तट । वीणा की झंकृति में स्मृति की पुरातन कथा जग जाती हृदय मे,-बादलों के अङ्ग में मिली हुई रश्मि ज्यों नृत्य करती ऑखों की अपराजिता-सी श्याम कोमल पुतलियों मे, नूपुरों की भनकार करती शिराओं में सम्वरित और गति ताल-मूर्च्छनाओं सधी। अधरों के प्रान्तों पर खेलती रेखाएँ सरस तरङ्गभङ्ग लेती हुई हास्य की। ।