यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वीणावादिनी तब भक्त भ्रमरों को हृदय में लिए वह शतदल विमल आनन्द-पुलकित लोटता नव चूम कोमल चरणतल । बह रही है सरस तान-तरङ्गिनी, बज रही वीणा तुम्हारी सगिनी, अयि मधुरवादिनी, सदा तुम रागिनी अनुरागिनी, भर अमृत-धारा आज कर दो प्रेम विह्वल हृदयदल, आनन्द-पुलकित हो सकल तव चूम कोमल चरणतल । स्वर हिलोरें ले रहा आकाश में कॉपती है वायु स्वर - उच्छवास में, ताल - मात्राएँ दिखातीं भङ्ग, नव गति, रङ्ग भी मूञ्छित हुए से मूर्च्छना करती उठाकर प्रेम - छल, भानन्द-पुलकित हो सकल तव चूम कोमल चरणतल ! " २३.२.३८.