यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अनामिका प्रेम, सदा ही तुम असूत्र हो उर-उर के हीरों के हार, गूंथे हुए प्राणियों को भी गुंथे न कभी, सदा ही सार २०.२.३२.