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प्रेम के प्रति - चिर-समाधि में अचिर-प्रकृति जब तुम अनादि तब केवल तम : अपने ही सुख - इङ्गित से फिर हुए तरङ्गित सृष्टि विषम । तत्वों में त्वक बदल बदल कर वारि, वाष्प ज्यों; फिर बादल, विद्यत की माया उर मे, तुम उतरे जग में मिथ्या- फल । 3 - - वसन वासनाओं के रंग रंग पहन सृष्टि ने ललचाया, बॉध बाहुओं मे रूपों ने समझा-अब पाया-पाया; किन्तु हाय, वह हुई लीन जब क्षीण युद्धि-भ्रम में समझे दोनों, था न कभी वह प्रेम, प्रेम की थी छाया। काया,