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अनामिका किम्बा, हे यशोराशि! कहते हो आँसू बहाते हुए- "आर्त भारत | जनक हूँ मैं जैमिनि-पतञ्जलि-व्यास ऋषियों का; मेरी ही गोद पर शैशव-विनोद कर तेरा है बढ़ाया मान राम-कृष्ण-भीमार्जुन-भीष्म-नरदेवों ने। तुमने मुख फेर लिया, सुख की तृष्णा से अपनाया है गरल, हो बसे नव छाया में, नव स्वप्न ले जगे, भूले वे मुक्त प्रान, साम-गान, सुधा-पान !" बरसो आसीस, हे पुरुष-पुराण, तव चरणों में प्रणाम है। .. १२. २३