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► अगर बतायेगी तू पागल मुझको तो उन्मादिनी कहूँगा मैं भी तुझको; अगर कहेगी तू मुझको 'यह है मतवाला निरा' तो तुझे बताऊँगा मैं भी लावण्य-माधुरी-मदिरा ; पार कभी देगी तू मुझको कविता का उपहार तो मैं भी तुझे सुनाऊँगा भैरव के पद दो चार ! शान्ति-सरल मन की तू कोमल कान्ति- यहाँ अब आ जा, प्याला-रस कोई हो भर कर अपने ही हाथों तू मुझे पिला जा, नस-नस में आनन्द-सिन्धु की धारा प्रिये बहा जा ; ढीले हो जायें ये सारे बन्धन, होये सहज चेतना लुप्त, भूल जाऊँ अपने को, करदे मुझे अचेतन । भूलूं मैं कविता के छन्द, अगर कहीं से आये सुर-संगीत-- अगर बजाये तू ही बैठ बगल में कोमले तार तो कानों तक आते ही रुक जाये उनकी झङ्कार ,

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