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दान लेकर झोली आये ऊपर, देखकर चले तत्पर वानर । द्विज राम-भक्त, भक्ति की प्राश पूजते शिव को बारहो मास; कर रामायण का पारायण जपते हैं श्रीमन्नारायण; दुख पाते जब होते अनाथ, कहते कपियों से जोड़ हाथ, मेरे पड़ोस के वे सज्जन, ' करते प्रतिदिन सरिता-मज्जन; मोली से पुए निकाल लिये, बढ़ते कपियों के हाथ दिये देखा भी नहीं उधर फिर कर जिस ओर रहा वह भिक्षु इतर; चिल्लाया किया दूर दानव, बोला मैं-"धन्य, श्रेष्ठ मानव "

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